Monday, May 4, 2020
कविता : बेरोजगार...
आज हम सभी युवा का एक ही मात्र लक्ष्य है रोज़गार होना..
सभी कहते है लड़किया ही घर छोड़ जाती है पर लड़के भी पहले नौकरी हासिल करने के लिए पढ़ने हेतु घर का त्याग करते है जो कभी एक कप खुद से चाय नहीं बनाया हो वो अब खाना खुद बनाता है जो रूम मे किसी को घुसने नहीं देता था अब उसे room share करना पड़ता है ये कविता ऐेसे ही लड़कों की भावना और व्यथा है l दोस्तों अगर आपको पसन्द आती है तो comment कर हमे जरूर बताएगा साथ ही शेयर करना न भूले l
) कविता बेरोजगार
राह चलते पूछते हैं लोग, अक्सर
क्या कर रहे हो आज कल,,
कौंध देता है, य़ह सवाल जहन को
अफसोस जताने पर हो जाता हूँ,
मजबूर खुद पर
और करता हूँ स्वंय से सवाल
क्या कर रहा हूं मैं आजकल
अंतर्मन से आती है आवाज
मैं भ्रष्टाचार नहीं करता,
मैं सरकार नहीं चलाता,
कुर्सी के लिए जात पात नहीं करता
मैं चोरी- डकैति या
ज़मीर की तिजारत नहीं करता
मैं हत्याएँ नहीं करता
किसी की इज़्ज़त तार तार नहीं करता,
वादा कर, मैं बेवफाई नहीं करता l
ख्वाब देखा हूँ
मुकम्मल होगी एक दिन
यकीन है खुद पर
आज?
आज मैं सिर्फ मेहनत करता
आज भी ठेस पहुँचाती है, मुझ जैसे को
यह सवाल,
कि क्या कर रहा है वह आज कल
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