राहत इन्दौरी (उर्दू: ڈاکٹر راحت اندوری) (जन्म: 1 जनवरी 1950-11 अगस्त 2020 ) एक भारतीय उर्दू शायर और हिंदी फिल्मों के गीतकार थे थे।[1] वे देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर में उर्दू साहित्य के प्राध्यापक भी रह चुके हैं। उनकी मृत्यु 11 अगस्त 2020 को हुई।[2]
वास्तविक नाम : राहत कुरैशी
जन्म : 1 जनवरी 1950 (आयु 70)
इंदौर, मध्य प्रदेश, भारत
मृत्यु : 11 अगस्त 2020 (उम्र 70) दिल का दौरा
इंदौर, मध्य प्रदेश, भारत
व्यवसाय : उर्दू शायर, गीतकार
राष्ट्रीयता : भारतीय
नागरिकता : भारतीय
शिक्षा: स्नातकोत्तर, पी. एचडी.
विधा :गज़ल, नज़्म, गीत
जीवनसाथी : सीमा
सन्तान :शिबली, फैसल, सतलज
शुरुआती दौर
राहत इंदोरी जी ने शुरुवाती दौर में इंद्रकुमार कॉलेज, इंदौर में उर्दू साहित्य का अध्यापन कार्य शुरू कर दिया। उनके छात्रों के मुताबिक वह कॉलेज के अच्छे व्याख्याता थे। फिर बीच में वो मुशायरों में व्यस्त हो गए और पूरे भारत से और विदेशों से निमंत्रण प्राप्त करना शुरू कर दिया। उनकी अनमोल क्षमता, कड़ी लगन और शब्दों की कला की एक विशिष्ट शैली थी ,जिसने बहुत जल्दी व बहुत अच्छी तरह से जनता के बीच लोकप्रिय बना दिया। राहत साहेब ने बहुत जल्दी ही लोगों के दिलों में अपने लिए एक खास जगह बना लिया और तीन से चार साल के भीतर ही उनकी कविता की खुशबू ने उन्हें उर्दू साहित्य की दुनिया में एक प्रसिद्ध शायर बना दिया था। वह न सिर्फ पढ़ाई में प्रवीण थे बल्कि वो खेलकूद में भी प्रवीण थे,वे स्कूल और कॉलेज स्तर पर फुटबॉल और हॉकी टीम के कप्तान भी थे। वह केवल 19 वर्ष के थे जब उन्होंने अपने कॉलेज के दिनों में अपनी पहली शायरी सुनाई थी।
शिक्षा
राहत का जन्म इंदौर में 1 जनवरी 1950 में कपड़ा मिल के कर्मचारी रफ्तुल्लाह कुरैशी और मकबूल उन निशा बेगम के यहाँ हुआ। वे उन दोनों की चौथी संतान हैं। उनकी प्रारंभिक शिक्षा नूतन स्कूल इंदौर में हुई। उन्होंने इस्लामिया करीमिया कॉलेज इंदौर से 1973 में अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की[3] और 1975 में बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय, भोपाल से उर्दू साहित्य में एमए किया।[4] तत्पश्चात 1985 में मध्य प्रदेश के मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।
राहत जी की दो बड़ी बहनें थीं जिनके नाम तहज़ीब और तक़रीब थे,एक बड़े भाई अकील और फिर एक छोटे भाई आदिल रहे। परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी और राहत जी को शुरुआती दिनों में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। उन्होंने अपने ही शहर में एक साइन-चित्रकार के रूप में 10 साल से भी कम उम्र में काम करना शुरू कर दिया था। चित्रकारी उनकी रुचि के क्षेत्रों में से एक थी और बहुत जल्द ही बहुत नाम अर्जित किया था। वह कुछ ही समय में इंदौर के व्यस्ततम साइनबोर्ड चित्रकार बन गए। क्योंकि उनकी प्रतिभा, असाधारण डिज़ाइन कौशल, शानदार रंग भावना और कल्पना की है कि और इसलिए वह प्रसिद्ध भी हैं। यह भी एक दौर था कि ग्राहकों को राहत द्वारा चित्रित बोर्डों को पाने के लिए महीनों का इंतजार करना भी स्वीकार था। यहाँ की दुकानों के लिए किया गया पेंट कई साइनबोर्ड्स पर इंदौर में आज भी देखा जा सकता है।उनका निधन 11 अगसत 2020 को दिल का दौरा(हार्ट अटैक)आने की वजह से हुआ ।

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