फणीश्वर नाथ रेणु जन्म शताब्दी 4 मार्च
मेरे अजीज दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम पढ़ेंगे ख्याति प्राप्त महान साहित्यकार फणीश्वर नाथ रेणु जी के बारे में आज जब में इस आर्टिकल को लिखने जा रहा हूं इसकी वजह एक ही है कि हमलोग अपने पूर्वजों के बारे में पढ़ें उनको जानने और उनसे सीखने का प्रयास करें l आज दिनांक 04 मार्च 2021 को उनका जन्म शताब्दी पूरे देश के साथ साथ विदेशों में भी धूम धाम से मनाई जा रही हैं l सच कहते हैं लोग किसी के जाने के पश्चात उनकी महता और योगदान को ध्यानाकृष्ट किया जाता है l ऐसे लाखों उदाहरण पड़े हैं जहां महान साहियकारों को उनके रहते उनकी उपेक्षा की गईं और जाने के बाद उनको सर आंखों पर बीठा लिया गया l प्रेमचंद्र बाबा नागार्जुन इन्होंने कलजयी रचना की लेकिन आज की तरह तब उन्हें वो लोकप्रियता नहीं मिली जो आज मिल रही हैं l ऐसा तब होता तो इनको आपार खुशी की अनुभूति होती हैं क्योंकि साहित्यकार इसी के लिए तो लिखता है l

फणीश्वर नाथ 'रेणु' एक हिन्दी भाषा के कालजयी साहित्यकार हैं। इनके पहले उपन्यास मैला आंचल को बहुत ख्याति मिली थी जिसके लिए उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। लेकिन कहां जाता है कि उन्होंने सरकार के विरोध में यह पुरस्कार को वापस कर दिए l
जन्म की तारीख और समय: 4 मार्च 1921, अररिया
मृत्यु की जगह और तारीख: 11 अप्रैल 1977, भारत
पूरा नाम: फणीश्वरनाथ रेणु
फ़िल्में: ततीसरी कसम, पंच लाइट
इनाम: पद्म श्री
भारत के हिंदी साहित्य के रूप में अपनी पहचान बना चुके फणीश्वर नाथ रेणु जी का जन्म शिलानाथ मंडल एवम उनकी माता पाणो देवी के घर हुआ था l
रेणु जी की जीवन परिचय :
फणीश्वर नाथ ' रेणु ' का जन्म 4 मार्च 1921 को बिहार के अररिया जिले में फॉरबिसगंज के पास औराही हिंगना गाँव में हुआ था। उस समय यह पूर्णिया जिले में था। लेकिन वर्तमान समय में यह अररिया जिले में हैं l उनकी शिक्षा भारत और नेपाल में हुई। प्रारंभिक शिक्षा फारबिसगंज तथा अररिया में पूरी करने के बाद रेणु ने मैट्रिक नेपाल के विराटनगर के विराटनगर आदर्श विद्यालय से कोईराला परिवार में रहकर की। इन्होने इन्टरमीडिएट काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से 1942 में की जिसके बाद वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। बाद में 1950 में उन्होने नेपाली क्रांतिकारी आन्दोलन में भी हिस्सा लिया जिसके परिणामस्वरुप नेपाल में जनतंत्र की स्थापना हुई। पटना विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के साथ छात्र संघर्ष समिति में सक्रिय रूप से भाग लिया और जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रांति में अहम भूमिका निभाई। १९५२-५३ के समय वे भीषण रूप से रोगग्रस्त रहे थे जिसके बाद लेखन की ओर उनका झुकाव हुआ। उनके इस काल की झलक उनकी कहानी तबे एकला चलो रे में मिलती है। उन्होने हिन्दी में आंचलिक कथा की नींव रखी। सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय, एक समकालीन कवि, उनके परम मित्र थे। इनकी कई रचनाओं में कटिहार के रेलवे स्टेशन का उल्लेख मिलता है। इनकी रचनाओं को पढ़कर यह अनुभूति होती है कि इनके रचनाओं में भारत की आत्मा कहे जाने वाली गांवों का निवास हैं l
लेखन शैली :
इनकी लेखन-शैली वर्णणात्मक थी जिसमें पात्र के प्रत्येक मनोवैज्ञानिक सोच का विवरण लुभावने तरीके से किया होता था। पात्रों का चरित्र-निर्माण काफी तेजी से होता था क्योंकि पात्र एक सामान्य-सरल मानव मन (प्रायः) के अतिरिक्त और कुछ नहीं होता था। इनकी लगभग हर कहानी में पात्रों की सोच घटनाओं से प्रधान होती थी। एक आदिम रात्रि की महक इसका एक सुंदर उदाहरण है।
रेणु की कहानियों और उपन्यासों में उन्होंने आंचलिक जीवन के हर धुन, हर गंध, हर लय, हर ताल, हर सुर, हर सुंदरता और हर कुरूपता को शब्दों में बांधने की सफल कोशिश की है। उनकी भाषा-शैली में एक जादुई सा असर है जो पाठकों को अपने साथ बांध कर रखता है। रेणु एक अद्भुत किस्सागो थे और उनकी रचनाएँ पढते हुए लगता है मानों कोई कहानी सुना रहा हो। ग्राम्य जीवन के लोकगीतों का उन्होंने अपने कथा साहित्य में बड़ा ही सर्जनात्मक प्रयोग किया है।
इनका लेखन प्रेमचंद की सामाजिक यथार्थवादी परंपरा को आगे बढाता है और इन्हें आजादी के बाद का प्रेमचंद की संज्ञा भी दी जाती है। अपनी कृतियों में उन्होंने आंचलिक पदों का बहुत प्रयोग किया है। यहीं कारण है कि उपन्यास " मैला आंचल" विश्व विख्यात हुई ll
उपन्यास
उपन्यास के संदर्भ में कहा कहा जाता है कि और यह वास्तविकता भी हैं कि रेणु जी अपने मात्र एक ही उपन्यास मैलाआंचल से इतनी प्रसिद्धि प्राप्त की, कि उनकी यह रचना कलजयी रचना के पात में आकर खड़ी हो गई l
रेणु को जितनी ख्याति हिंदी साहित्य में अपने उपन्यास मैला आँचल से मिली, उसकी मिसाल मिलना दुर्लभ है। इस उपन्यास के प्रकाशन ने उन्हें रातो-रात हिंदी के एक बड़े कथाकार के रूप में प्रसिद्ध कर दिया। कुछ आलोचकों ने इसे गोदान के बाद इसे हिंदी का दूसरा सर्वश्रेष्ठ उपन्यास घोषित करने में भी देर नहीं की। हालाँकि विवाद भी कम नहीं खड़े किये उनकी प्रसिद्धि से जलनेवालों ने. इसे सतीनाथ भादुरी के बंगला उपन्यास 'धोधाई चरित मानस' की नक़ल बताने की कोशिश की गयी। पर समय के साथ इस तरह के झूठे आरोप ठण्डे पड़ते गए।
रेणु के उपन्यास लेखन में मैला आँचल और परती परिकथा तक लेखन का ग्राफ ऊपर की और जाता है पर इसके बाद के उपन्यासों में वो बात नहीं दिखी।
मैला आंचल
परती परिकथा
जूलूस
दीर्घतपा
कितने चौराहे
पलटू बाबू रोड
कथा-संग्रह संपादित करें
एक आदिम रात्रि की महक
ठुमरी
अग्निखोर
अच्छे आदमी
रिपोर्ताज संपादित करें
ऋणजल-धनजल
नेपाली क्रांतिकथा
वनतुलसी की गंध
श्रुत अश्रुत पूर्वे
प्रसिद्ध कहानियाँ संपादित करें
मारे गये गुलफाम (तीसरी कसम)
एक आदिम रात्रि की महक
लाल पान की बेगम
पंचलाइट
तबे एकला चलो रे
ठेस
संवदिया
तीसरी कसम पर इसी नाम से राजकपूर और वहीदा रहमान की मुख्य भूमिका में प्रसिद्ध फिल्म बनी जिसे बासु भट्टाचार्य ने निर्देशित किया और सुप्रसिद्ध गीतकार शैलेन्द्र इसके निर्माता थे। यह फिल्म हिंदी सिनेमा में मील का पत्थर मानी जाती है। हीरामन और हीराबाई की इस प्रेम कथा ने प्रेम का एक अद्भुत महाकाव्यात्मक पर दुखांत कसक से भरा आख्यान सा रचा जो आज भी पाठकों और दर्शकों को लुभाता है।
आज भी युवाओं के साथ साथ हर वर्ग के लोग रेणु जी कृति को पढ़ने को लालायित रहते हैं l
अपने प्रथम उपन्यास 'मैला आंचल' के लिये उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
अंत में उनकी और उनके पिता के बीच जो एक देश भक्त की भावना थी इसका जिक्र करना लाजमी बन जाता है lफणीश्वर नाथ रेणु जी के पिता शिलानाथ मंडल एक समृद्ध परिवार से तालुकात रखते थे और रेणु जी के पिता शिलानाथ मंडल जी खेती करके अपने और अपने परिवार का पालन पोषण करते थे l कहने का अर्थ यह है कि रेणु जी का परिवार देशभक्त परिवार था l अपने परिवार से ही रेणु जी को देश हित में कार्य करने के विचार और सिद्धांत प्राप्त हुए थे l
रेणु जी के पिता शिलानाथ मंडल जी उनको अक्सर यह कहा करते थे कि यदि देश को आजादी दिलाने के लिए जान भी चले जाए तो इसका दुःख मत करना और तुम भी देश के नागरिकों को देश की आजादी के लिए सचेत और आगाह करना l रेणु जी के पिता एक भारतीय किसान होने के साथ साथ भारतीय स्वतंत्रता सेनानी भी रहे हैं l और रेणु जी को ऐसे ही प्रेरणा अपने पिता से मिलती रहती थीं l
मैं खुद को सौभाग्यशाली मानता हूं कि मेरा भी जन्म रेणु जी की पावन धरती पर हुआ l वो मैला आंचल की धरती जहां मुंबई बॉलीवुड अभिनेता अभिनेत्री को चलकर यहां आना पड़ा l जय हिंद जय भारत जय रेणु जी
Note: दोस्तों आज रेणु जी जन्म शताब्दी दिवस मनाई जा रही हैं आप लोग आज के दिन कम से कम दो पल निकालकर रेणु जी को पढ़े और हो सके तो उनके जन्म स्थान पर जाए आपको सुखद अनुभूति होगी
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