Monday, June 29, 2020

बाबा नागार्जुन : 26 जनवरी 15 अगस्त

नागार्जुन (11 जून 1911- 5 नवम्बर 1998) हिन्दी और मैथिली के अप्रतिम लेखक और कवि थे। अनेक भाषाओं के ज्ञाता तथा प्रगतिशील विचारधारा के साहित्यकार नागार्जुन ने हिन्दी के अतिरिक्त मैथिली संस्कृत एवं बाङ्ला में मौलिक रचनाएँ भी कीं तथा संस्कृत, मैथिली एवं बाङ्ला से अनुवाद कार्य भी किया। साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित नागार्जुन ने मैथिली में यात्री उपनाम से लिखा तथा यह उपनाम उनके मूल नाम वैद्यनाथ मिश्र के साथ मिलकर एकमेक हो गया। कविता : 26 जनवरी 15 अगस्त किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है ? कौन यहाँ सुखी है ? कौन यहाँ मस्त है ? सेठ है, शोषक है, नामी गला काटू है गालियाँ भी सुनता है भारी थूक चाटू है चोर है डाकू है, झूठा-मक्कार है कातिल है छलिया है, लुच्चा-लबार है जैसे भी टिकट मिला जहाँ भी टिकट मिला शासन के घोड़े पर वो ही सवार है उसी की जनवरी, उसी का अगस्त है बाकी सब दुखी हैं बाकी सब पस्त हैं…. कौन है खिला-खिला, बुझा-बुझा कौन है कौन है बुलन्द आज, कौन आज त्रस्त है खिला-खिला सेठ है, श्रमिक है बुझा-बुझा मालिक बुलन्द है, कुली-मजूर त्रस्त है गुंडों की चौकड़ी है, गुंडा ही मस्त है उन्हीं की जनवरी उन्हीं का अगस्त है गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी गिन लो बुधुआ के पास अभी कितना कबाड़ है महल आबाद है, झोपड़ी उजाड़ है गरीबों की बस्ती में उखाड़ है पछाड़ है धत तेरी, धत तेरी, कुच्छो नहीं कुच्छो नहीं बस ताड़ का तिल है, तिल का ही ताड़ है ताड़ के पत्ते हैं, पत्तों के पंखे हैं पंखों की ओट है, पंखों की आड़ है और इसी आड़ में भाषण के झाड़ में जादुई आँकड़े हैं, बजट का पहाड़ है किसकी जनवरी है, किसका अगस्त है ? कौन यहाँ सुखी है, कौन यहाँ मस्त है सेठ है सुखी और सेठ ही मस्त है मंत्री है सुखी और मंत्री ही मस्त है उसी की जनवरी, उसी का अगस्त है – बाबा नागार्जुन

Thursday, June 18, 2020

लघुकथा : एहसास

आज लघुकथा दिवस की बहुत बधाई l मैं कोई रचनाकर नहीं हूँ बस लिखने पढ़ने की अभिलाषा रहती है पेश है मेरी एक लघुकथा एहसास लघुकथा का हो रायसाहब कैसे है आप आज कल? ई लॉक डाउनवा मे छुप छुपाकर थोड़ा गप्पे लड़ाने आए है आप ही से l का बताए गुप्ता जी ई कोरों- नवाँ मिले तो ससुरे को भरपेट मारे l पूरे दुनिया को नाक मे दम करके रखा है ई कोरोंनवाँ l झुंझलाते हुए रायसाहब ने अपनी खीज व्यक्त किया l का हुआ राय साहब एतना गुस्सा काहे कर रहे हैं? हमीं लोग का भलाई के लिए सरकार ने लॉक डाउन किया है न! सब्र रखिए सब ठीक हो जाएगा l खाक ठीक हो जाएगा! सावधानी से जायदा लापरवाही बरती जा रही है l ई कारण न जाने कब तक ई घरवा मे कैद रहना पड़ेगा l कोई अता - पता ना है हो गुप्ता जी l दम घुट रहा है घर में, चिड़चिड़ा गया है मन l अरे राय साहब आपको घर में काहें को घुटन हो रहा है मर्दे! आप तो पक्षियों के पालने के बड़ा शौकीन है l बुध्दिजीवी जानवरों को आज किस बात का घुटन हो रहा है राय साहब l एतना सुनकर सुनकर मानो साँप सूँघ गया हो l उनकी आँखों की नमी मानो पछतावा के साक्ष्य है और चेहरे पर अफसोस की साफ झलक थीं l नाम जितेन्द्र कुमार गुप्ता पिता हरिद्वार प्रसाद गुप्ता घर - अररिया आर ऐस, अररिया, बिहार Jitendrathejitu@gmail.com

वीर सैनिकों पर कविता

कब तक हमारे जवान शहीद होते रहेंगे, कब तक अमरो की सुची में एक और नाम जुड़ते रहेंगे, आखिर कब तक जांबाज, शेर वीर जवानों को खोकर, उन्हें अमर कहते रहेंगे, कब तक ऐसे ही दिल को दिलाशा देते रहेंगे, बस अब और नहीं अटल फैसला लेना होगा, हाय तौबा हाय तौबा से उपर उठकर, बाप को बेटे का कान पकड़कर, उसकी गलती का एहसास दिलाना होगा, फिर भी न माने तो, ऐसे कुपुत्र को करारा सबक सिखाना होगा, गलती से बाज़ नहीं आए तो, दिल पर पत्थर रखकर इसे मिटाना होगा, बारंबार गलती अपराध बन जाता है, तब अपराधी को माफी नहीं, कठोर दंड दिया जाता है, ऐसे में दूजा अपराधी अपराध करने से डर जाता है। आंतकी का हल , न बातचीत न युद्ध विराम से होगा, छलियां है ये , कायरता, क्रुरता रग-रग में है इनका ढूंढ़ों इनको इनके घर में और आंतक लीला समाप्त करों, शेर की तरह दहाड़ों और चूहे की जमात समाप्त करों,। एक के बदले दस नहीं सौ शीश काट लाओ, आंतक क्या हैं, आंतकी इससे रु ब रु हो जाएंगे, हिमाकत नहीं होगी फिर से आंख दिखाने की, जब इन्हीं के घर में इनकी औकात बतलाएंगे, तब बड़ी अदब से अब्बा जान कहकर, जलपान के लिए बुलाएंगे, हम भी सारे गिले-शिकवे भुलाकर गले लगाएंगे ll मुर्झाई सी कली पुनः खिल जाएगी विश्व को आंतक से छुटकारा मिल जाएगा चाहूं ओर शांति होगी भारत पुनः विश्व गुरु बन जाएगा ll रचनाकार जितेन्द्र कुमार गुप्ता कृपया प्रतिक्रिया करना न भूले l

सुशांत सिंह राजपूत कविता #ripshushantsir

जिंदादिली से हँसना - मुस्कुराना हार जीत की फिक्र छोड़ तेरा जीने की अंदाज सीखाना जिंदगी में important kuchh भी नहीं जिंदगी के अलावे हो ग़र परेशां तो खुद की हत्या कायरता है कोई solution नहीं, छिछोरे बन जिंदगी आसाना बनाना करोड़ों के बुझे हुए मन में उम्मीदों की लौ जलाना ये तेरे ही सारे सीख तू ही कैसे भूल गया l यार! सुशांत ऐसे भी जाता है क्या कोई? जैसे तू गया ll हार न मानने वाला सुशांत कैसे ग़ज़ भर रस्सी से जिंदगी की जंग हार गया ll जिसने दी फ़िल्मों से सीख जहां को वो क्यों आख़िर कैसे टूट गया ll कामयाबी हाथों में थीं शोहरत की सेहरा माथे पर थी फिर ऐसी क्या बात हुई? दुनिया ऊब कर जीवन की डोर छोड़ चला शायद अपनों से दिल की बात न हुई घुट घुट कर जीने से बेहतर उसे मौत लगी ll धोका दे गया सरफराज वफा सिखाकर छोड़ गया! किरदारों से लाखो को अपना बनाकर यूँ भी रोना अभिनय में कहां आसान यारों हँस लेना कभी ग़मों को छिपाकर ll जिंदगी से बेहतर सुशांत को मौत लगी चार दीवारों के बीच अपनों की कमी बहुत खली वरना मरता कौन हैं शौक से यहाँ फांसी से लटक कर मरना एक बहाना था ll सुशांत, थे तुम क्यों शोर मचा के चले गए जीवन के उथल - पुथल से लड़ना तुम भूल गए जिंदगी के मैदान से जीत छीन लेने वाले ऐसा भी तुझे हुआ क्या? जो फांसी पे झूल गए ll चेहरे पर ग़ज़ब का चमक अंदाज ए बयां बेहतरीन चला गया सबको सिखाकर एक सबक कि भले ही कदमों में बुलंदियां मगर एक अदद दोस्त रखा कर जब भी हो कोई परेशानियाँ चाय की घुट के साथ उस से बेझिझक बतियाया कर ll क्योंकि तन्हाई मे जीने की तमन्नाये खत्म हो जाया करती है बाते करना सीख लो खुलकर यारों से वर्ना न जाने कब जिन्दगी ही मौत बन जाया करती है l ये तुमने ठीक नहीं किया मन व्याकुल अशांत हैं बाते कर लेते रूठे यारो से तुम ठहरे बिहार ए शान सुशांत थे l कवि :Jk gupta (youtuber begana bol jk gupta) jitendrathejitu@gmail.com

Friday, June 5, 2020

पर्यावरण दिवस पर कविता poem on environment

1.पेड़ मेरी टहनियां मत काटो छिन जाएगी खुशियां मेरी मेरी अस्तित्व मिटी अगर तेरी अस्तित्व भी मिट जाएगी ll मत तोड़ो मेरे फूलों को छिन जाएगी मेरी आभा मिट्टी ने ही पाला मुझको मिट्टी ही मेरा घरौंदा ll तुम मत हरों हरियाली मेरी जग बेरंग हो जाएगी, काटोगे जो मेरी बाहों को मैं अपंग हो जाऊँगा ll कहने दो बाबा को किस्से चहचहाने दो चूडियों को नीड़ बनाने दो इन्हें मेरी ममता की गोद में खेलने दो, झूलने दो बच्चों को झुला बैठने दो बटोही को नीम की छांव में ll काटते रहे यदि यू ही मुझको कितनी खुशियां लूट जाएगी मैं तो चुप रह जाऊँगा प्रकृति चुप न रह पाएगी ll इतिहास ने भी द्रौपदी का वस्त्र हरा था तो विध्वंस हुआ था कुरुक्षेत्र में आज भी मानवता हार चुकी है अब सीखो इतिहास के पन्नों से सुनो गौर से प्रलय की आहट मिल चुकी है l 2. नदियाँ संघर्ष कर दुःख उठाकर असहनीय पीड़ा सहकर कभी संकरी कभी विशाल रूप धरकर पहाड़ों से बहकर आयी हूँ, इस धरा पर ll जल ही जीवन है बस य़ह कहने भर हैं II कहकर य़ह इंसान बना दिया है मुझे एक कूड़ेदान ll खैर! प्रकृति की लॉक डाउन मुझे कर दिया है स्वच्छ, शुद्ध और स्वस्थ अब टूट चुका हैं मानव का अभिमान डर - डर कर बह रहीं हूँ कहीं फिर न बन जाऊँ कूड़ेदान ll 3. इंसान यूँ आँखे 👁 बंद ये चुप होना कान भी बंद तमाशा देख और मौन होना प्रकृति की दोहन कर तेरा खुश होना ll समाप्त कर देगा सब कुछ समतल हो जाएगी सारी धरा l नृशंस मासूम जीवों की हत्या नीचता की हदें पार इंसानियत की भाषा भूल इतनी जहालियत अब और कितना अपराध बहुत हुआ बस छिन लेगी प्रकृति, इंसान होने का अधिकार ला खड़ा करेगी मानवों को अब अपनी कठघरे में न कोई सुनवाई, न पछतायावा के आंसू सिर्फ होगा अंतिम फ़ैसला और देगी कठोर सजा l नाम जितेन्द्र कुमार गुप्ता

डेली करेंट अफेयर्स 2022 (Daily Current Affairs 20 JUNE 2022) : IMPORTANT QUESTIONS WITH ANSWER FOR PREPRATION OF GOVERMENTp JOB

 डेली करेंट अफेयर्स 2022 (Daily Current Affairs 20 JUNE 2022) : IMPORTANT QUESTIONS WITH ANSWER FOR PREPRATION OF GOVERMENT दोस्तों जैसा की ...